
पूर्वी सिंहभूम, 02 अक्टूबर। विजयादशमी के पावन अवसर पर पूर्वी सिंहभूम जिला सहित कोल्हान के विभिन्न हिस्सों में मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन श्रद्धा, भक्ति और भावुक माहौल के बीच किया गया। चार दिनों तक चले भक्ति उत्सव, पूजा-अर्चना और आराधना के बाद भक्तों ने “आमि एबार एशो मां” और “अगले बरस तो जल्दी आना मां” के जयघोष के साथ देवी से पुनः शीघ्र आगमन की कामना की।
सुबह से ही श्रद्धालुओं का हुजूम विसर्जन घाटों की ओर उमड़ पड़ा। डीजे की धुन और ढाक की ताल पर भक्त झूमते हुए प्रतिमाओं को लेकर घाट की ओर बढ़े। हर किसी के चेहरे पर मां के दर्शन की तृप्ति और विदाई की वेदना साफ झलक रही थी।
विसर्जन स्थलों पर जिला प्रशासन की ओर से सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए। हर घाट पर दंडाधिकारी, पुलिस पदाधिकारी और बल तैनात रहे। जलसुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एनडीआरएफ टीम भी मौके पर मौजूद रही। प्रशासनिक नियंत्रण में प्रतिमा विसर्जन शांतिपूर्ण और श्रद्धा से संपन्न हुआ।
सिंदूर खेला में झलकी परंपरा और उल्लास
दुर्गा पूजा के समापन के अवसर पर पारंपरिक ‘सिंदूर खेला’ का आयोजन पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम और सरायकेला-खरसावां जिले में बड़े उल्लास के साथ हुआ। विवाहित महिलाओं ने मां दुर्गा को सिंदूर अर्पित कर दीर्घ वैवाहिक जीवन और पारिवारिक सुख-समृद्धि की कामना की।
पारंपरिक लाल किनारी वाली सफेद साड़ियों में सजी महिलाओं ने पहले प्रतिमा को सिंदूर अर्पित किया और फिर एक-दूसरे की मांग में सिंदूर भरकर पति की लंबी आयु की प्रार्थना की। पूजा पंडालों में गूंजते ढोल-ढाक और गीत-संगीत के बीच महिलाएं भावुक होते हुए भी उल्लास से परंपरा निभाती रहीं।
पूजा समितियों ने विशेष मंच बनाकर महिलाओं की सुविधा सुनिश्चित की। युवाओं और बच्चों ने इस रंगीन दृश्य को कैमरों में कैद किया। पुजारियों ने बताया कि सिंदूर खेला केवल रस्म नहीं, बल्कि स्त्री शक्ति, आपसी स्नेह और एकता का प्रतीक है।
झारखंड में अब यह बंगाली परंपरा व्यापक रूप से अपनाई जा रही है। महिलाओं ने नृत्य, गीत और पारंपरिक मिठाइयों के साथ इस अवसर का आनंद लिया। विदाई की घड़ी में वे एक-दूसरे को गले लगाकर अगले वर्ष पुनः दुर्गा पूजा के आगमन की प्रतीक्षा करती दिखीं।